लोकसभा चुनाव 2019: इस सीट दिग्गजों के बीच है ‘करो या मरो’ का मुकाबला
Publivlive.co.in[Edited by Shalini Rajput]
चुनावी इतिहास के अनुसार, कोई भी पार्टी तिरुवनंतपुरम लोकसभा क्षेत्र को अपना गढ़ बताने का दावा नहीं कर सकती क्योंकि इसने कांग्रेस और एलडीएफ के दूसरे सबसे बड़े घटक दल-भाकपा दोनों के प्रत्याशियों को चुना है.
लोकसभा चुनाव 2019: इस सीट दिग्गजों के बीच है ‘करो या मरो’ का मुकाबला
तिरुवनंतपुरम: अगर आगामी लोकसभा चुनाव में केरल में तीन दलों सत्तारूढ़ एलडीएफ, विपक्षी यूडीएफ और भाजपा-राजग के लिए कहीं भी ‘करो या मरो’ की स्थिति है तो वह प्रतिष्ठित तिरुवनंतपुरम सीट है जहां दिग्गजों के बीच त्रिकोणीय मुकाबला दिखने की उम्मीद है.
आत्मविश्वास से लबरेज हैं शशि थरूर
कांग्रेस नीत यूडीएफ के मौजूदा सांसद शशि थरूर तीसरी बार जीत के लिए आत्मविश्वास से लबरेज हैं जबकि भाजपा के वरिष्ठ नेता कुम्मनम राजशेखरन और माकपा नीत एलडीएफ के प्रत्याशी एवं मौजूदा विधायक सी दिवाकरण तीसरी बार जीत के थरूर के सपने को चकनाचूर करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं. राज्य के दक्षिणतम छोर पर स्थित तिरुवनंतपुरम लोकसभा सीट अरब सागर के तट से लेकर पश्चिमी घाट के ढलान तक फैली है जहां 13,34,665 मतदाता हैं.
ये हैं सात विधानसभाएं
शहरी, ग्रामीण और तटीय इलाकों वाले इस क्षेत्र में सात विधानसभाएं आती हैं – तिरुवनंतपुरम, कझाकूट्टम, वत्तियार्कावू, निमोम, पारश्शाला, कोवलम और नेय्याटिंकारा. चुनावी इतिहास के अनुसार, कोई भी पार्टी तिरुवनंतपुरम लोकसभा क्षेत्र को अपना गढ़ बताने का दावा नहीं कर सकती क्योंकि इसने कांग्रेस और एलडीएफ के दूसरे सबसे बड़े घटक दल-भाकपा दोनों के प्रत्याशियों को चुना है.
एलडीएफ दे रही है कांटे की टक्कर
यूडीएफ ने अपनी मौजूदा सीट को बरकरार रखने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है. वहीं, इस सीट को वापस हासिल करना एलडीएफ के लिए गर्व की बात होगा. 2014 के आम चुनाव में एलडीएफ को भाजपा के बाद इस सीट पर तीसरा स्थान मिला था. जहां तक भाजपा का सवाल है तो तिरुवनंतपुरम उन चुनिंदा सीटों में से एक है जहां वह कमल खिलने की उम्मीद कर रही है. भाजपा सबरीमला मुद्दे से लेकर नरेंद्र मोदी सरकार की विभिन्न विकास पहलों को भुनाने की कोशिश कर रही है.
दो बार सीट को जीत चुके हैं शशि थरूर
दो बार इस सीट से विजयी रहे थरूर के लिए इस सीट को फिर से हासिल करना इस बार आसान नहीं होगा क्योंकि उनके प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार भी मतदाताओं के बीच उतने ही लोकप्रिय हैं और वे एक-एक वोट पाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे. थरूर ने 2009 में पहली चुनावी जीत में 99,998 मतों से भारी जीत हासिल की थी. हालांकि 2014 के आम चुनाव में यह अंतर गिरकर 15,000 रह गया. भाजपा के ओ राजगोपाल ने उन्हें आखिरी क्षण तक कड़ी टक्कर दी थी.
बहरहाल, थरूर का मानना है कि इस बार वह इस संख्या को सुधार सकते हैं और उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोग पिछले 10 साल में उनके लिए किए काम से पूरी तरह अवगत हैं. इस बीच, भाजपा राजशेखरन के साफ रिकॉर्ड और जमीन से जुड़े व्यक्तित्व को भुनाने की कोशिश कर रही है. राजशेखरन ने हाल ही में मिजोरम के राज्यपाल पद से इस्तीफा दिया था. साल 2011 की जनगणना के अनुसार, तिरुवनंतपुरम जिले की कुल आबादी में 66.46 प्रतिशत हिंदू, 19.1 प्रतिशत ईसाई और 13.72 प्रतिशत मुसलमान हैं.