पशु पक्षियों को तो बख़्श देते…!
😊अगिया बेताल😊
क़मर सिद्दीक़ी
ये नागपुरी परंपरा वाले न ख़ुद प्रेम करते हैं,और न किसी को करने देते हैं,और अगर इनकी विचारधारा से बाहर का हो तब तो ये महा पाप की श्रेणी में गिना जाएगा। मज़े की बात ये कि, इनकी सियासत भी इसी “नफ़रती” पिलर पर टिकी हुई है। पहले बाबा जी ने अपने प्रदेश में प्रेमी जोड़ों पर ऑपरेशन मजनू के नाम पर बंदिश लगाई,तो कहीं संस्कृति के नाम पर दौड़ाया गया। पर हद तो तब हो गई,जब इनकी इसी आइडियोलॉजी का शिकार एक “सारस” हो गया। उसे क्या मालूम कि,उसे घायल अवस्था में उठा कर उसकी तीमारदारी करने वाला मोहम्मद नाम का व्यक्ति एक “मुसलमान” है। पशु-पक्षी तो केवल प्रेम की भाषा,और धर्म समझते हैं। इस व्यक्ति का पिछले कई हफ्तों से सारस के साथ उसके प्रेम और स्नेह का वीडियो वायरल हो रहा था। लोग इस पारास्परिक लगाव से वशीभूत थे। इसी बीच किसी ने साहेब का एक पुराना वीडियो वायरल कर दिया,जिसमें वो एक तोते को अपने हाथों से दुलारने का प्रयास कर रहे हैं,और वो दूर खिसकता जा रहा है। इसका मतलब है कि,पक्षियों में भी बुद्धि होती है। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था,यहां तक कि, “सरकारी” और “दरबारी” लोग भी इसकी प्रशंसा करने से नहीं हिचक रहे थे, पर जैसे ही विरोधी दल के नेता ने उस भले मानुष से मुलाक़ात की,सरकार की त्योरियां चढ़ गईं। अरे हम इंसान और इंसान के प्रेम को बर्दाश्त नहीं करते,और तुम्हारी इतनी हिम्मत कि, एक पक्षी से! फौरन नियम क़ानून की किताबों को पलटाया गया,और बे लोस दो प्रेम करने वालों को वन कर्मियों द्वारा जुदा कर दिया गया। आज फिर किसी गांव का वीडियो वायरल हो रहा है,जिसमें वही सारस एक परिवार के लोगों के बीच भोजन ग्रहण कर रहा है।
कितनी कमज़ोर होती हैं ये सरकारें,जो एक पक्षी के प्रेम का बोझ भी नहीं बर्दाश्त कर सकतीं।
काम ख़त्म, आदमी ख़तम
आज कल पंजाब के अमृतपाल का बड़ा नाम है। 18 मार्च से 80 हज़ार पुलिसकर्मियों को चकमा दिए हुए है,मगर हाथ नहीं आया। 2022 में दुबई से भारत आया था,और आज सरकारें कह रही हैं कि,उसने खालिस्तान का झंडा,करेंसी,नक्शा,
गोपनीय फौज सब बना ली। तो आप किस गांजे की नींद में डूबे थे,या फिर भिंडरवाले मामले की तरह ही जागते हुए भी सोने का नाटक किया गया।
ऐसे लोग पैदा तो अपने आप ही होते हैं,पर इनको सियासत की प्रयोगशाला में धर्म के रसायन के साथ मिला कर विलयन बनाया जाता है,तब कहीं जा कर यह क्रियाशील होते हैं। इनको भी हीरे की तरह तराशा जाता है,पर “हीरा है सदा के लिए” की तर्ज़ पर इनकी भूमिका नहीं होती। “काम ख़तम, आदमी ख़तम” इसके पहले भी ऐसी प्रयोगशाला से कई उत्पाद निकल चुके हैं,पर वो सब के सब या तो जेल में हैं,या विदेश में।
इस समय अमृतपाल सहित कुछ बाबा भी अपने चरम पर हैं,पर अंतर इतना है कि,इनमे अमृतपाल जहां बांझ है,वहीं अन्य दुधारू गाय हैं।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण ‘प्रदेश लाइव’ के नहीं हैं और ‘प्रदेश लाइव’ इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेता है।)